हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, आयतुल्लाह सईदी ने कहा कि कुछ लोग यह सोचते हैं कि अमेरिका की असलियत बदल गई है, लेकिन हकीकत यह है कि उसकी बुनियाद ही ज़ुल्म, कत्लेआम और स्थानीय निवासियों के दमन पर रखी गई थी। उनके अनुसार,आज भी अत्याचारी लोग हक़ के मुक़ाबले में गाली गलौज और दुश्मनी की भाषा बोलते हैं।
उन्होंने हरम-ए-मुत्तहर में इस्लामिक आज़ाद यूनिवर्सिटी के प्रमुख बीजन रंजबर से मुलाक़ात के दौरान कहा कि इस्लामी क्रांति से पहले इमाम ख़ुमैनी (रह.) का जिहाद का तरीका नरम था, और आज भी इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता उसी राह पर क़ायम हैं ताकि जनता मैदान में डटी रहे।
आयतुल्लाह सईदी ने हाल ही में हुए दुश्मन के बारह दिवसीय हमले का ज़िक्र करते हुए कहा कि इस युद्ध में सबसे बड़ा गौरव जनता की मौजूदगी है, जिन्होंने अलग-अलग तबकों और विचारों के बावजूद मोर्चे पर डटे रहकर मज़बूती दिखाई। उन्होंने कहा,हालाँकि कुछ ज़िम्मेदार लोग, बुद्धिजीवी और कमांडर शहीद हुए, लेकिन जनता की एकजुटता ही हमारा असली पूँजी है, जिस पर हमें फ़ख़्र करना चाहिए।

आयतुल्लाह सईदी ने हज़रत फ़ातिमा मआसूमा (स.अ.) के हरम की वैज्ञानिक और प्रशिक्षणात्मक भूमिका को उजागर करते हुए कहा कि इसी स्थान ने आयतुल्लाहिल उज़मा अब्दुलकरीम हायरी, इमाम ख़ुमैनी (रह.) और अन्य महान विद्वानों की परवरिश की। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस्लामिक आज़ाद यूनिवर्सिटी हरम के विकासात्मक प्रोजेक्ट्स में क्रमबद्ध और योजनाबद्ध तरीके से सहयोग करेगी।
अंत में उन्होंने दुश्मन की घुसपैठ की साज़िशों से सावधान करते हुए कहा,शैतान हमेशा कदम-ब-कदम आगे बढ़ता है, इसलिए हमें भी उसी समझदारी से कदम-ब-कदम उसका मुकाबला करना होगा और जनता की मौजूदगी को बनाए रखना होगा।

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